आध्यात्म कहता है कि आप अपने मन को काबू नहीं सकते | मन चंचल है वह ऋषि-मुनियों के काबू नहीं आया तो आपके कहाँ काबू आएगा |
आध्यात्म का मतलब है कि परम सत्य | सत्य ही ईश्वर है | इस पर कौन प्रश्न उठा सकता है |
लेकिन यह कहा किस सन्दर्भ में गया है और इसे कहने का तात्पर्य क्या था यह जानना तो जरूरी हो जाता है | ऐसी बहुत-सी बातें हम आपको आगे बताएँगे जो किसी न किसी का नाम लेकर कही जाती हैं | और आप सब मान जाते हैं कि इतनी जगह से और इतने लोग कह रहे हैं तो अवश्य ही सत्य होगा |
खैर, आध्यात्म में ये बात कही गई है – यह बिलकुल सच है |
मन बहुत चंचल है और वह हमें किसी एक सोच पर टिकने ही नहीं देता | मन को काबू नहीं किया जा सकता | लेकिन यह ‘ध्यान’ के विषय में कहा जाता है | जिसे हम एकाग्रता से जोड़ लेते हैं | जबकि एकाग्रता और ध्यान में बहुत फर्क है | हम ने पिछले भाग में भी बताया था कि ‘ध्यान’ में ध्यान अभौतिक पर केन्द्रित करने को कहा जाता है और मन इसमें सबसे बड़ा बाधक होता है | मन को काबू नहीं कर सकते, उसे रोका नहीं जा सकता उसे केवल दिशा दिखाई जा सकती है उस अनन्त और शान्ति की ओर लेकर जाना होता है जहाँ वह हो कर भी नहीं होता और इसी स्थिति को आध्यात्म में शुन्यव्स्था या अ’मन’ कहा जाता है | ऐसी स्थिति में मन एक दर्पण की तरह हो जाता है | कोई उसके सामने आएगा तो तस्वीर दिखेगी वरना दर्पण, दर्पण हो कर भी नहीं है |
हम यहाँ भौतिक की बात कर रहे हैं और भौतिक जीवन में मन को काबू करना आसान है | क्योंकि आपको भटकते मन को किसी एक भौतिक वस्तु या कार्य पर लगाना है, जैसे अगर पढ़ रहे हैं तो ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर है | अगर खेल रहे हैं तो ध्यान केवल खेल पर है | ऐसा करने पर आपको मानसिक बल के साथ ही साथ शारीरिक बल भी मिलता है |
जो व्यक्ति ज्यादात्तर नकारात्मक स्थिति (सोच, समझ और काम में सिर्फ नेगेटिव ही देखना) में रहते हैं उनकी वक्त बीतने के साथ एकाग्रता की शक्ति कमजोर होती जाती है | जिस कारण वह किसी भी सोच या काम पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते | किसी भी सोच या काम पर ध्यान केन्द्रित करना और वहाँ से हटाना दिमागी ताकत की निशानी है | नकारात्मक सोच या काम वाले चूँकि अपनी दिमागी ताकत का बेवजह जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं इसीलिए वह किसी ख़ास सोच या काम में न तो ध्यान लगा पाते हैं और न ही हटा पाते हैं | ऐसे लोगों का मन बेलगाम घोड़े की तरह किसी भी दिशा में दौड़ता रहता है, जैसे कभी किसी पर प्यार आ गया और थोड़ी देर या दिन में उस व्यक्ति विशेष पर गुस्सा इस कद्र आ गया कि वह दुश्मन से भी बढ़ कर दिखने लगा | उस व्यक्ति की वही बातें जो कुछ समय पहले अच्छी लगती थी वही अब हद से ज्यादा बुरी लगने लगी | ऐसे व्यक्ति के साथ रहने वाला यह नहीं समझ पाता है कि उसे क्या अच्छा और क्या बुरा लगता है | एक समय पर जो अच्छा लगता वह कुछ समय बाद बुरा लगने लगता है और कई बार तो कुछ ही घंटों में ऐसा होने लग जाता है | जो व्यक्ति अपने मन पर काबू नहीं कर पाता है वह जिन्दगी में कभी सफल नहीं हो सकता है |
एकाग्रता का मूल मन्त्र : शरीर से प्राप्त उर्जा को एक समय में एक दिशा देना | आपकी जो भी और जितनी भी शरीरिक उर्जा है उसे ज्यादा से ज्यादा बचाना और फिर किसी एक दिशा की ओर मोड़ कर उस उर्जा से ज्यादा से ज्यादा फल हासिल करना यही एकाग्रता का मूल मन्त्र है | एकाग्रता से आप अपनी जिन्दगी में जो भी चाहेंगे वह हासिल कर सकते हैं | यह कोई किताबी बात नहीं है बल्कि सौ प्रतिशत सच है |
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