दोस्तों, हमारे जहन में बहुत से सवाल उभरते हैं कि कर्म फल असल में मिलता है ? अगर कर्म फल होता है तो फिर free-will क्या है ? माया-मोह क्या होता है ? किस्मत या होनी क्या होती है ? मन क्या होता है ? मन को कैसे कण्ट्रोल किया जा सकता है ? कुण्डलिनी शक्ति क्या है ? गुरु को कैसे चुना जा सकता है ? Einstein और Stephen Hawking की टाइम मशीन क्या असल में हो सकती है ? हम मरते ही क्यों हैं और मरने के बाद कहाँ चले जाते हैं ? Self-Realization या Who I Am जैसे प्रश्न क्या और क्यों उठते हैं ? यदि उठते हैं तो इनका हल क्या है ? तन्त्र-मन्त्र-यंत्र की क्या सचमुच ताकत होती है ? ये नजर लगना क्या होता है ? क्या सचमुच इसका कुछ भी असर होता है ? अगर होता है तो इसका इलाज क्या है ? क्या हम कर्म-योग से अपने अंदर बदलाव ला सकते हैं ? Personality Development क्या कर्म-योग से सम्भव है ? क्या हम positive हो सकते हैं ? ऐसे और भी बहुत से प्रश्नों का जवाब आपको हमारी इस श्रृखला में आगे आने वाले लेख में अवश्य मिलेगा |
खैर, आगे बढ़ते हैं और कर्म-योग यानि कर्म और कर्म-फल को विज्ञान के दृष्टिकोण से देखते हैं ताकि कर्म और कर्म-फल या कर्म-योग किताबी न रहे | इसे व्यवहारिक जामा पहनाते हैं ताकि यह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में स्वयमेव ही उतर जाए |
दोस्तों, कर्म और कर्म-फल की जब भी बात आती है तो हमें वेद, पुराण, रामायण, महाभारत व गीता के साथ ही साथ अन्य हजारों श्लोक, घटनायें व कहानियाँ सुना दी जाती हैं | इतना सब सुनने के बाद हम अभी यह सोच ही रहे होते हैं कि इन सब का मैं क्या करूँ, मुझे तो आज के संदर्भ में बताओ और समझाओ | लेकिन हमारी बातों को अनसुना कर कुछ ऐसी नसीहतें दी जाती हैं जो लगभग अव्यवहारिक होती हैं | क्यों ! है न सही बात ?
लेकिन हम आपको वह सब बताएँगे जो सही मायने में सही और व्यवहारिक है | हम वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता या अन्य का जिक्र तो करेंगे लेकिन उतना ही जितना जरूरी और आज के सन्दर्भ में प्रासंगिक है |
आइये शुरू करते हैं :
दोस्तों, जैसा कि हमने इस श्रृंखला के भाग – 1 में बताया था कि यदि ब्रह्माण्ड को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है वैसे ही हर ग्रह अपनी धुरी पर घूमने के ईलावा किसी-न-किसी और ग्रह के भी चक्कर लगा रहा जैसे पृथ्वी, सूर्य का चक्कर लगा रही है | और सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगा रहा है और आकाश गंगा ब्लैक होल का चक्कर लगाने के साथ ही साथ पूरी आकाश गंगा भी चल रही है |
आइये इस सब जानकारी को अपनी जिन्दगी में ढाल कर देखते हैं :
दोस्तों, धर्म-ग्रंथ या अध्यातम कहता है कि हमारा शरीर पाँच तत्व से बना है : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश | अगर हम विज्ञान की बात करें तो वह कहता है कि यह पूरा ब्रह्मांड परमाणु और ऊर्जा से बना है और हमारा 99 प्रतिशत शरीर इन्ही से बना है | अतः दोनों को जोड़ कर देखें तो अध्यात्म और विज्ञान लगभग एक ही बात कहते हैं | और ऐसा प्रतीत होता है कि इस धरती पर हर जीव एक ग्रह है |
अध्यात्म कहता है इस अनंत ब्रह्मांड का हम हिस्सा हैं और ये ब्रह्मांड हमारे अंदर भी बसता है जो बाहरी ब्रह्मांड से लगभग मिलता जुलता है | विज्ञान भी कहता हैं कि यह ब्रह्मांड अनंत है और इसमें चारों ओर फैले ग्रह भी अनंत हैं | हम सब इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं अतः हमारा भी इस ब्रह्माण्ड जैसा होना अनिवार्य हो जाता है | ब्रह्माण्ड में हर ग्रह की अपनी एक दशा और चाल है | चूँकि हमारा शरीर भी एक भौतिक वस्तु है | अतः हमारा शरीर भी ग्रह की तरह सब काम स्वयम कर रहा है | बस फर्क केवल एक ही है कि हमारे अंदर परमात्मा का अंश यानि आत्मा है | आत्मा होने के कारण ही यह शरीर रूपी ग्रह सजीव यानि जिंदा रहता है और हम इस शरीर से कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी रूप से कार्य यानि कर्म कर रहे हैं | जैसा कि गीता में कहा गया है कि हम कर्म करने को मजबूर हैं और इसे यदि विज्ञान की नजर से देखें तो भूख या प्यास लगने पर हम भोजन या पानी पीते हैं | जिससे हमें energy मिलती है और जैसे ही हमें energy मिलती है हम कर्म करने को मजबूर हो जाते हैं | हर ग्रह एक दिन ब्लैक होल में समा कर समाप्त हो जाते हैं या फिर आपस में एक दूसरे से टकरा जाते हैं | वैसे ही हमारे जीवन का भी अंत हो जाता है |
दोस्तों, इस ब्रह्माण्ड में होने वाली हर घटना को अपने, अपने परिवार, समाज, प्रदेश, देश से जोड़ कर देखिये | आपको महसूस होगा कि सब कुछ हमारे जीवन में भी होता है | फर्क केवल एक ही है और वह मैं पहले ही बता चुका हूँ कि हमारे अंदर परमात्मा का अंश यानि आत्मा है | अतः हम इस शरीर से कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी रूप से कार्य यानि कर्म कर रहे हैं |
विज्ञान कहता है कि सब ग्रह या आकाशगंगा एक शक्ति से बंधे हुए हैं और वह शक्ति जिसे विज्ञान energy कहता है | वह है गुरुत्वाकर्षण या gravitational force | इसी से पूरा ब्रह्माण्ड बंधा हुआ है और एक लय-ताल में चले जा रहा है | इसी लय-ताल से बंधे हुए ही वह आपस में टकरा भी जाते हैं और ब्लैक-होल में भी समा जाते हैं क्योंकि सब की चाल अलग-अलग है |
दोस्तों, जैसा कि हमने अभी बताया कि हम भी इस धरती पर एक ग्रह की भांति ही हैं अतः हम पर भी एक और ताकत अवश्य लग रही होगी जिसके कारण हम सब बंधे हुए हैं और शायद इसके बारे में हमारे धर्म ग्रन्थ लिखने वाले जानते थे | इस गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा का ही नाम उन्होंने माया दिया होगा | हम अपनी पूरी जिन्दगी मोह-माया यानि आकर्षण के चक्कर लगाते-लगाते गुजार देते हैं | तभी तो अध्यात्म बारम्बार कहता है कि तुम्हारा शरीर एक भौतिक वस्तु है और उसका इस मोह-माया से निकल पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है लेकिन क्योंकि तुम्हारे अंदर परमात्मा का अंश है और उसे जगाने या उसे साधने पर तुम मोह-माया के बंधन से मुक्त हो सकते हो | और मोह-माया से मुक्त इंसान आत्मा के जरिये ईश्वर तक संपर्क साध सकता है | हमारा कहना है कि ईश्वर तक पहुँचों या न पहुँचो लेकिन आत्मा को साध कर इस मोह-माया के जंजाल को कम तो कर ही सकते हो | कम शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं कि जब हम इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं तो मोह-माया यानि आकर्षण से पूरी तरह निकल पाना लगभग असम्भव है | ‘हाँ’ अगर प्रयास किया जाए तो नाम-मात्र ही इस मोह-माया में फसेंगे |
आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें – कर्म योग भाग-3