राहू और केतु ग्रह :-
दोस्तों, भाग – 10 एवं भाग – 11 में ग्रहों के साथ-साथ उनकी राशियों के बारे में विस्तार से समझाया गया है | अब हम उन दो ग्रहों के बारे में बताते हैं जिन्हें हम छाया ग्रह कहते हैं | इनके नाम हैं राहू और केतु हैं | क्योंकि ये छाया ग्रह हैं इसीलिए इन्हें किसी भी राशि का स्वामी नहीं बनाया गया है | राहू और केतु राशि और भाव या उनके साथ कौन-सा ग्रह बैठा उसके अनुसार बर्ताव करते हैं | आइये अब हम राहू और केतु के स्वाभाव को भाव या घर के अनुसार विस्तार से समझाते हैं :
पहला भाव या घर : पहले घर या भाव या लग्न में अकेला राहू होने पर चेहरा सुंदर, प्रभावशाली और एक ओज लिए होता है | ऐसा जातक धोखेबाज भी हो सकता है और कामुक प्रवृति का भी हो सकता है | जातक के सिर में दर्द गाय-बगाय होता ही रहेगा |
लग्न में यदि वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या तुला या मकर राशि हो और अकेला राहू हो तो ऐसी जातक महिला अच्छे स्वाभाव वाली, भाग्यशाली, योग्य, अच्छी व्यापारी और सफल ग्रहणी होने के साथ-साथ छहरे बदन वाली और अच्छी वेशभूषा की शौकीन होगी | ज्यादात्तर पहले घर में अकेला राहू होने पर महिला जातक कामुक, आराम प्रिय, प्रतिशोधी भी हो सकती हैं | इनके पति इन पर हमेशा लट्टू रहते हैं | लग्न में यदि वृश्चिक राशि हो तो ऐसी महिला जातक मोटी, ईर्ष्यालु, व्यसनी होगी | लग्न में यदि मेष, सिंह या धनु राशि हो तो ऐसी महिला जातक में पुरुष गुण होते हैं |
पहले घर या भाव या लग्न में अकेला केतु जातक को कायर और गुस्सैल बनाता है | ऐसे जातक को गुस्सा किसी भी बात पर बहुत जल्दी आ जाता है | ऐसे जातक के चेहरे पर कोई दाग या चेहरे का कोई रोग हो सकता है | ऐसे जातक वैवाहिक चिंता से ज्यादात्तर दुखी रह सकते हैं | अर्थात वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं हो सकता है |
पहले भाव या घर या लग्न में केतु होने पर जातक महिला की शादी देर से होती है | ऐसी जातक महिला परिश्रमी तो होती हैं लेकिन उन्हें उनके परिश्रम का फल पूरा नहीं मिलता है | इनका कद लम्बा और बदन छरहरा होता है | ज्यादा भाग्यशाली नहीं होती हैं |
दूसरा भाव या घर : दूसरे भाव में राहू होने पर जातक की दृष्टि अच्छी होती और रहती है | ऐसा जातक अपनी गाथा सबको गाता फिरता है | पुरुष जातक पत्नी के अधीन रहता है | ऐसे जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है | दूसरे घर में राहू के साथ यदि शुक्र हो तो धन बहुत ज्यादा होने बवजूद जीवन सुखमय नहीं होता है | दूसरे घर में मेष या वृश्चिक राशि होने पर राहू गले या वाणी की बिमारी देता है | राहू के साथ पाप ग्रह हों तो ज्यादात्तर भाग्य साथ नहीं देता है और जीवन में दरिद्रता बनी रहती है | दूसरे घर पर यदि किसी और ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो या पाप दृष्टि न पड़ रही हो तो ऐसा जातक जिन्दगी में बहुत ज्यादा भ्रमण करता है |
दूसरे भाव में केतु होने पर यदि किसी और ग्रह की दृष्टि दूसरे घर न पड़ रही हो या पाप दृष्टि न पड़ रही हो तो ऐसा जातक जिन्दगी में बहुत ज्यादा भ्रमण करता है | दूसरे घर में धनु या मीन राशि होने पर केतु जातक को सुखी जीवन देता है | शत्रु राशि होने पर केतु के कारण चेहरे या मुँह या गले के रोग हो सकते हैं | केतु धन की हानि और पारिवारिक कलह-क्लेश का कारण भी बनता है | केतु के साथ यदि दूसरे घर में पाप ग्रह हों तो जातक बहुत खर्चीला होता है | दूसरे घर में मेष या वृश्चिक राशि होने पर केतु गले या वाणी की बिमारी देता है |
तीसरा भाव या घर : तीसरे घर या भाव में राहू वीरता, सफलता और भोग-विलास भरा जीवन देता है | ऐसे जातक के या तो भाई या बहन होते नहीं हैं या फिर वह उनसे सदा के लिए अलग हो जाता है | तीसरे घर में यदि सिंह या सम राशि आती है तो राहू भाई-बहन का सुख नहीं छीनता है लेकिन उन पर धन व्यय ज्यादा करना पड़ता है | जबकि राहू अन्य राशियों में भाई-बहन का सुख छीन लेता है | तीसरे घर में यदि शुभ ग्रह की राशि आती है तो राहू कलात्मक या तकनीकी कार्यों की ओर जातक को प्रेरित करता है |
तीसरे घर में केतु होने पर जातक वीर तो होता है लेकिन वह समाजिक मेल-मिलाप का इच्छुक नहीं होता है | इसके बावजूद उसे समाज से सम्मान प्राप्त होता है | केतु इस घर में जातक को निर्देयी या षडयंत्रकारी भी बनाता है | वह अपनी मानसिक स्थिति कभी किसी को नहीं बताता है क्योंकि वह कभी भी किसी भी हालात में मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं हो पाता है | जातक को कान या हाथ के रोग हो सकते हैं | ऐसा जातक किसी न किसी विद्या में एक्सपर्ट तो होता है लेकिन वह उसका प्रयोग अच्छे ढंग या रूप में नहीं करता है |