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‘मैं मुंबई से गोवा जा रहा था | दूसरी श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे में खिड़की के साथ वाली बर्थ पर मैं अभी आराम से बैठा ही था कि एक लड़की मेरे पास आ कर बैठ गई | कौतूहलवश मैंने उससे पूछा ‘मैडम आप…..’ |
वह मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोल उठी ‘मेरी रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं हो पाई है लेकिन टिकट निरीक्षक ने कहा है कि आप कहीं भी बैठ जाएँ मैं देखता हूँ, अगर आपको कोई परेशानी हो तो मैं कहीं और बैठ जाती हूँ’ |
‘नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं, आपको जब तक सीट नहीं मिलती आप यहाँ बैठ सकती हैं’ |
‘थैंक यू’, कह कर वह मुस्कुरा दी |
मैं पीछे हट कर बैठ गया | उसे पहली बार मैंने ध्यान से देखा | उसने नीले रंग का पंजाबी सूट पहना हुआ था जिसमें वह काफी सुंदर लग रही थी | उसने अभी भी अपने कंधे पर बैग लटका रखा था | जिसे देख कर मेरी हंसी छूट गई | वह हैरान होकर मुझे देखती हुई बोली ‘क….क्या हुआ’? मैं अपनी हँसी रोकते हुए बोला ‘जी आप तो ऐसे बैठी हैं जैसे बस अभी आपको सीट मिल जाएगी’ |
वह मुँह बिचकाते हुए बोली ‘क्यों, क्यों नहीं मिलेगी और इसमें हंसने वाली कौन सी बात है’|
‘मैडम वो टीटी है | इतनी जल्दी नहीं आने वाला | पहले वह उनके पास जाएगा जहाँ उसका अपना फ़ायदा होगा | जहाँ उसकी मजबूरी है वहाँ वह सबसे बाद में आएगा’ |
वह बड़े अंदाज से कंधे उचकाते हुए बोली ‘वो मुझे शरीफ़ आदमी लग रहा था’ |
उसकी बात सुन मैं मुस्कुराते हुए बोला ‘तो मैं क्या बदमाश लग रहा हूँ’ |
वह हैरान हो मुझे घूरते हुए बोली ‘क्यों मैंने आपको क्या कहा’?
मैं बोला ‘आप अभी भी कंधे पर बैग ऐसे लटका कर बैठी हैं जैसे मैं आपका बैग छीन कर भाग जाऊँगा’ |
वह शर्माते हुए बोली ‘ओह सॉरी, मुझे याद ही नहीं रहा’, कह कर उसने अपना बैग सीट के नीचे रख दिया | फिर मासूमीयत से मुझे देखते हुए बोली ‘मेरी वजह से आपको बेवजह परेशानी हो रही है | मुझे अच्छा नहीं लग रहा है’ | उसकी बात सुन मैं गंभीर भाव से बोला ‘मैडम मैं अकेला ही गोवा जा रहा था | अब आप मिल गई हैं इसलिए मुझे तो कोई बुरा नहीं लग रहा है | बाकि आपका पता नहीं कि आपको मेरा साथ अच्छा लग रहा है या बुरा’ | मेरी बात सुन कर वह मुस्कुरा दी लेकिन बोली कुछ नहीं | उसके हाव-भाव से जरूर लग रहा था कि उसे मेरे पास बैठना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मजबूरी थी | गाड़ी चले लगभग दो घंटे हो चुके थे और टीटी का कोई अता-पता नहीं था | हम दोनों ही खिड़की से बाहर पीछे भागते खेतों और पेड़ो को देख रहे थे | मुझे ऐसा देखना बचपन से ही अच्छा लगता था | वह बाहर देखते-देखते कभी-कभी मुझे भी देख लेती थी | शाम के करीब छः बज चुके थे | चाय वाले को आते देख मैंने उससे पूछा कि क्या वह चाय पीना पसंद करेगी तो उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया |
चाय पीते हुए उसने जो बात करना शुरू किया तो फिर सीट मिलने के बाद भी वह बंद नहीं हुई | रात के ग्यारह बजे मुझे ही कहना पड़ा कि अब आप जा कर अपनी बर्थ पर थोड़ी देर सो जाएँ क्योंकि यह ट्रेन गोवा सुबह पांच बजे ही पहुँच जाएगी | वह शर्माते हुए ‘बाय’ कर सोने के लिए चली गई | उस चार-पांच घंटे में उसने मुझे अपने बारे में लगभग सब कुछ बता दिया था | मुझे रात भर उसकी बातें याद आती रहीं और कब सुबह हो गई मालूम ही नहीं चला |
उसके बाद हम कई बार गोवा और मुंबई में मिले | मुझे उसका साथ काफी अच्छा लगने लगा था और मेरे ख्याल से उसे भी कुछ ऐसा ही लगता था | लेकिन कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने से कुछ पहले ही वह गायब हो गई | मैंने उसके कॉलेज और गोवा जा कर उसे खोजने की काफी कोशिश की लेकिन कुछ भी पता नहीं लग पाया | बस एक ही बात पता चली कि उसके परिवारवालों के साथ कुछ बुरा हुआ था | उसके बाद आज पहली बार मैंने उसे यहाँ देखा है | मेरी नीरस जिन्दगी में वह बहार बन कर आई और फिर गायब हो गई’, कह कर आयुष चुप कर जाता है |
हार्दिक और पुलकित जोकि अभी तक आँख बंद कर आयुष की बात सुन रहे थे | आयुष के चुप करते ही हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं | वह आयुष को कुछ बोल पाते इससे पहले ही कमरे में लगे इण्टरकॉम की घंटी बज उठी | सब एक दूसरे को देख रहे थे लेकिन कोई भी फ़ोन उठाने को तैयार नहीं था | आखिर हार्दिक उठा और फ़ोन उठा कर ‘हेल्लो’ बोला | दूसरी तरफ से आती आवाज सुन कर बोला ‘जी, अभी बताता हूँ’, कह कर फ़ोन रख देता है |
‘कौन था’, पुलकित ने कौतूहलवश पूछा | हार्दिक ने बताया कि रेस्टोरेंट का मैनेजर बोल रहा था कि आधा घंटा रह गया है लंच टाइम खत्म होने में, कोई ऑर्डर देना है तो आप दे सकते हैं | यह सुन कर आयुष गंभीर भाव से बोला ‘दोस्त मुझे भूख नहीं है, तुम दोनों ने खाना है तो ऑर्डर कर दो’| यह सुन कर हार्दिक ने पुलकित को इशारे से समझाया कि यह भी खाएगा तू आर्डर कर | पुलकित फ़ोन करने के लिए उठता है तो हार्दिक आयुष का कंधा सहलाते हुए बोला ‘दोस्त कई बार वक्त कुछ इस तरह बदलता है कि कुछ भी समझ में नहीं आता कि आखिर रास्ता है कहाँ ? लेकिन रास्ता हमेशा सामने होता है बस तनाव के कारण दिखता नहीं है | मैं हूँ न, तू चिंता मत कर मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा’ |
फ़ोन कर पुलकित भी आयुष के पास आकर बैठते हुए बोला ‘भाई हम जानते हैं कि तेरा पिछला एक साल कैसा गुजरा है | अंकल के अचानक इस तरह लम्बा बीमार पड़ जाने पर उनका बिज़नस जिस तरह तूने सम्भाल लिया है वो काबिले तारीफ़ है | भाई उस दुःख की घड़ी में हम सब तेरे साथ तो न थे | लेकिन अब जब हम सब मिल गए हैं तो तू किसी भी तरह की चिंता मत कर | हार्दिक भाई तेरी इस आशा की किरण को बुझने नहीं देगा’ | यह सुन कर आयुष की आँखों में आँसू आ जाते हैं | वह हार्दिक और पुलकित के गले लग जाता है |
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हार्दिक सोनाली के कमरे की बेल बजाता है | अंदर से आवाज आती है ‘आ रही हूँ’ | यह सुन वह दरवाजे से थोड़ा पीछे हो कर खड़ा हो जाता है | दरवाज़ा खुलता है और एक बहुत ही सुन्दर लड़की जिसने की काफी साधारण कपड़े पहने हुए थे, बाहर झांकती है | हार्दिक को ऐसा ठगा-सा खड़ा देख वह लड़की बोली ‘जी कहिये’ | हार्दिक झेंपते हुए बोला ‘जी मैडम आप ही सोनाली हैं’ |
सोनाली अपने चेहरे पर आए बालों को पीछे करते हुए बोली ‘जी मैं ही सोनाली हूँ’| हार्दिक बहुत अदब से सिर झुकाते हुए बोला ‘मैडम मैं इस होटल का मैनेजर हूँ और आप जानती ही होंगी की दिल्ली में कोई भी जब होटल का कमरा लेता है तो हमें उसके बारे में डिटेल से पूछना पड़ता है | यह एक औपचारिकता मात्र ही है लेकिन सुरक्षा हेतू जरूरी भी है | अगर आप के पास समय हो तो मैं कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ’ | सोनाली परेशान होते हुए बोली ‘मैंने अपना आइडेंटिटी कार्ड रिसेप्शन पर दे तो दिया था’ |
हार्दिक धीमी आवाज में बोला ‘जी वह तो ठीक है लेकिन……’, वह इससे आगे कुछ बोल पाता इससे पहले ही सोनाली झुंझलाते हुए कर्कश आवाज में बोली ‘जी पूछिए आप क्या पूछना चाहते हैं’ |
‘मैडम आप नीचे रिसेप्शन पर आ जाएँ या फिर……’ |
‘मैंने अभी तो नाईट ड्रेस पहन ली है | आप अंदर आ जाइए | आपने जो पूछना है जल्दी से पूछ लीजीये क्योंकि मेरे सिर में दर्द् हो रहा है और मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ’, कह कर सोनिया दरवाज़ा खोल कर एक तरफ़ हट जाती है |
हार्दिक सोनिया का चेहरा पढ़ते हुए बोला ‘मैडम आप परेशान न हों | मैं फिर आ जाऊँगा’|
सोनाली अपने सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ‘नहीं, नहीं, आप को फिर आना पड़ेगा’ | यह सुन कर हार्दिक न चाहते हुए भी सोनाली के साथ कमरे में आकर कुर्सी पर बैठते हुए बोला ‘मैडम आप कहाँ से आ रही हैं’ |
‘जी मैं अभी तो जम्मू से आ रही हूँ | वैसे मैं रहने वाली गोवा की हूँ’ |
‘आप क्या जम्मू घूमने गई थीं’ |
सोनाली की आँखों के कोने गीले हो जाते हैं | वह कांपती आवाज में बोली ‘नहीं मैं किसी पर्सनल काम से गई थी’ | हार्दिक धीमी आवाज में बोला ‘मैडम आप बुरा न माने तो आपको वह काम बताना पड़ेगा जिस काम से आप वहाँ गईं थीं’ |
सोनाली कर्कश आवाज में बोली ‘ये क्या बात हुई | मैं किसी भी काम से जा सकती हूँ’ |
हार्दिक बहुत शिष्टाचार से बोला ‘मैडम प्लीज’ |
सोनाली गुस्से से सिर झटकते हुए बोली ‘मेरे पिता आर्मी में थे और आज से लगभग एक साल पहले वह एक आतंकवादी हमले में घायल हो गये थे | लगभग छः महीने के ईलाज के बाद उनका देहांत हो गया और यह सदमा मेरी माँ सहन न….’, कह कर वह फूट-फूट कर रोने लगी | हार्दिक यह सुन कर हैरान-परेशान हो जाता है | उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वह कैसे सोनाली को चुप कराए | अभी वह सोच ही रहा था कि सोनाली अपने पर काबू पाते हुए बोली ‘मैं यह देख कर पूरी तरह टूट गयी थी | काफी समय मैंने वहाँ जम्मू में अपने पिता के दोस्त के घर पर ही बिताया | लेकिन कोई किसी के घर कब तक रह सकता है अतः मैं वापिस गोवा आ गई थी | मैं अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी देश सेवा का मुआवजा लेने की इच्छुक नहीं थी लेकिन फ़ौज व पिता के दोस्तों के बहुत आग्रह पर मैं जम्मू अपने पिता का आर्मी से मिलने वाला मुआवज़ा लेने के लिए गई थी’ |
कांपती आवाज में गौरव बोला ‘मैडम मुझे बहुत दुःख है कि आपके साथ ऐसा दर्दनाक हादसा हुआ | क्या आपके परिवार में और कोई नहीं है’ | यह सुन कर सोनाली आँसू पोंछते हुए बोली ‘नहीं और कोई नहीं है लेकिन आपको इससे क्या लेना | आप जो पूछना चाहते थे मैंने बता दिया | अब आप जा सकते हैं’ |
हार्दिक कुर्सी से उठते हुए बोला ‘मैडम मैं एक आख़िरी सवाल आप से नहीं इस देश की उस बेटी से पूछना चाहता हूँ जिसने इस देश पर अपने पिता व माता को कुर्बान कर दिया और सारा दर्द अपने अंदर समेट लिया’ |
सोनाली ध्यान से हार्दिक को देखते हुए बोली ‘आप इस होटल के मैनेजर हैं’ |
‘जी नहीं, मैं इस देश का एक बेटा हूँ जो एक बड़े दिल वाली लड़की से बात करने आया है’|
‘जी धन्यवाद, अब आप जा सकते हैं’ |
हार्दिक दरवाजे के पास पहुँच कर धीमी आवाज में बोला ‘मैडम ऐसा ही कुछ मेरे एक दोस्त आयुष के साथ भी हुआ था’| यह सुनते ही सोनाली धम्म से वहीं बिस्तर पर बैठ जाती है | उसके चेहरे से लग रहा था कि वह ये नाम सुनकर अंदर-ही-अंदर पूरी तरह अंदर से हिल गई है | वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी लेकिन उसकी आँखों से बहते आंसू सब कुछ बयाँ कर रहे थे | वह कुछ देर हैरानी से हार्दिक को देखती रहती है फिर अपने पर काबू पाते हुए धीरे से कपकपाती आवाज में बोली ‘आप कौन हैं’|
हार्दिक वापिस आकर कुर्सी पर बैठते हुए बोला “मैडम मैं असल में आयुष का दोस्त हूँ’ |
सोनाली हैरान होते हुए बोली ‘ले…कि…न मैं तो आपको नहीं जानती | आप मुझे कैसे जानते हैं’? हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘मैडम वो तो मैं नहीं बताऊंगा’ | सोनाली सकपकाते हुए बोली ‘ऐसा क्यों’? हार्दिक हँसते हुए बोला ‘ऐसा नहीं है कि मैं बताऊंगा ही नहीं लेकिन अभी नहीं…. | पहले आप मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दो फिर मैं सोचूंगा कि आपको बताना है कि नहीं’| यह सुन कर सोनाली नाराज होते हुए बोली ‘पूछिए आप क्या पूछना चाहते हैं’?
हार्दिक गंभीर भाव से बोला ‘सोनाली जी आप दोनों बहुत कम समय साथ रहे फिर भी वह साथ आपको कैसा लगा’| सोनाली यादों में खोते हुए बोली ‘बहुत कम समय के लिए हम मिले और बिछुड़ गए | उसका एक कारण तो मेरी निजी जिन्दगी ने मुझे अचानक ऐसा झटका दिया कि मैं अभी तक भी उससे उभर नहीं पाई हूँ और दूसरा कारण ये रहा कि उसने कभी भी अपने बारे में मुझे कुछ ख़ास बताया ही नहीं’ |
हार्दिक सोनाली की आँखों में आँखें डाल उसके भावों को पढ़ते हुए बोला ‘अगर वो आपके साथ होता तो आपको आज कैसा लगता’ | सोनाली गंभीर भाव से बोली ‘मैंने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं क्योकिं वक्त ने मुझे ऐसा कुछ सोचने का मौका ही नहीं दिया | हाँ ! अगर वो मेरे साथ होता तो शायद मैं कुछ जल्दी सम्भल जाती | लेकिन कुछ बातें ऐसी जिन्दगी में ऐसी होती हैं जिन पर आपका कोई कण्ट्रोल नहीं होता’ |
हार्दिक सोनाली को देखते हुए बोला ‘नहीं मैडम ऐसा नहीं है | मेरे हिसाब से हमारी जिन्दगी में जो कुछ भी होता है वह सब हमारे कण्ट्रोल में हमेशा से होता है लेकिन हम वक्त रहते उस तरफ देखते ही नहीं हैं | जब वक्त निकल जाता है तब हम उसे किस्मत समझ कर संतोष कर लेते हैं’ | यह सुन कर सोनाली एक लम्बी सांस लेकर कंधे उचकाती हुए बोली ‘मैं नहीं मानती क्योंकि मैं तो भुग्तभोगी हूँ | आप ही बताएं कि मेरे माता-पिता का अचानक चले जाने में मेरा क्या हाथ था और मैं कैसे रोक लेती | दूसरा आयुष का मेरी जिन्दगी में आना और चले जाना मेरे कण्ट्रोल में कैसे था’ |
‘मैडम आपके पिता फ़ौज में थे और ऐसा फ़ौजी की जिन्दगी में कभी भी हो सकता है | इसमें आपका इतना दुःखी होना नजायज है | हाँ आपकी माँ का अचानक पिता के साथ ही चले जाना दुखदाई जरूर है | लेकिन मरना-जीना हमारे हाथ में कहाँ है | एक दिन आपको इस गम से बाहर तो आना ही है या आना ही पड़ेगा तो फिर आज क्यों नहीं | आयुष के मामले में भी आपकी कमी है | आपने वक्त रहते उससे उसकी जिन्दगी के बारे में क्यों कुछ नहीं पूछा ? आप इसे ऐसे भी तो मान सकती हैं कि वक्त या किस्मत ने आपको पहले ही बुरे वक्त से जूझने के लिए एक सहारा दिया था लेकिन आपने उसे समझा ही नहीं | आज आप उसे किस्मत मान रही हैं” | सोनाली हार्दिक की बात सुन सिर झुका कर धीमी आवाज में बोली ‘हाँ, शायद | मैंने कभी ऐसा सोचा ही नहीं | मुझे जब भी उसकी याद आई तो हमेशा येही लगा कि उसने यह सब जान बूझ कर किया था’|
हार्दिक सोनाली को देखते हुए बोला ‘मैडम ये भी तो हो सकता है कि उसके पास कुछ बताने को हो ही न या फिर वह पहले से ही अपनी जिन्दगी से जूझ रहा हो | शायद इसीलिए उसने आपको परेशान न करने के लिए ऐसा किया हो” |
सोनाली हैरान होते हुए बोली ‘हाँ ! शायद लेकिन मुझे तो बस उसमें ही कमी दिखती रही | अपनी कमी की तरफ ध्यान ही नहीं गया | आप इतना कुछ मेरे और उसके बारे में कैसे जानते हैं और आपने बताया नहीं कि आपने मुझे पहचाना कैसे | क्या आप इस होटल में काम करते हैं’ | हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘जी नहीं, मैं इस होटल में काम नहीं करता | आप के बारे में मुझे उसने ही बताया था | बाकि आप दोनों की बातों से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि आप दोनों की दोस्ती चाहे कुछ समय ही रही लेकिन अच्छी थी | आज की परिस्थिति में आप दोनों को एक दूसरे की जरूरत भी है और वक्त लगभग एक सा ही चल रहा है | दोनों ही सच्चे इंसान है और ऐसे इंसान बहुत कम आपस में टकराते हैं | मेरे पिता जी कहते हैं कि हम जब भी मिलते हैं या किसी से कोई सम्बन्ध बनता है तो इसमें पिछले जन्म का हाथ जरूर होता है’ |
सोनाली ख़ुश होते हुए बोली ‘आप सही कह रहे हैं | आज आपकी बातें सुन कर मुझे लग रहा है जैसे मेरे जीवन में प्रकाश की एक नई किरण निकली है | मैंने कभी ऐसा न सुना और न ऐसा सोचा | मैं आपकी बहुत आभारी हूँ कि आप मुझ से मिलने आए’ | हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘अब कुछ काम की बात हो जाए | मेरी तारीफ़ आप फिर कभी भी कर सकती हैं | मुझे तो आप ये बताइए कि क्या आप आयुष से फिर से अपनी दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहेंगी | लेकिन तभी जब आप की जिन्दगी में कोई और न हो’ | सोनाली हँसते हुए बोली ‘जी मेरी जिन्दगी में अभी तक तो कोई नहीं है | हाँ जहाँ तक आयुष की बात है | एक बार उससे जरूर मिलना चाहूंगी | बाकि तो उसके बाद ही कुछ कह सकती हूँ’ |
हार्दिक खुश होकर उठते हुए बोला ‘कब मिलना चाहेंगी’? सोनाली चेहकते हुए बोली ‘जब आप चाहें | बहुत पिटेगा मुझसे, अब आपकी मर्जी जब आप उसे पिटवाना चाहें’ |
हार्दिक तेज आवाज में बोला ‘आज अभी इसी वक्त’ |
‘क……..क्या, व……वो दिल्ली में है’, हैरान होते हुए सोनाली बोली |
‘जी वो न सिर्फ दिल्ली में है बल्कि इस होटल में और इसी फ्लोर पर है’ | सोनाली यह सुन कर एक झटके से उठ खड़ी होती है और कमरे में दो चार कदम असमंजस में काटते हुए बोली ‘यार तुम तो जब से मिले हो झटके पर झटके दिए जा रहे हो’, फिर कुछ रुक कर बोली ‘यकीन ही नहीं हो रहा है कि अचानक मेरी जिन्दगी ऐसे भी पलटी मार सकती है’| गौरव हँसते हुए बोला ‘मैडम कभी भी कुछ भी हो सकता है’ |
‘हाँ यार यकीन ही नहीं हो रहा है | मैं कैसे इस होटल में पहुँच गई मुझे नहीं मालूम | सही मायनों में पूछो तो मैं उस ऑटो वाले को बहुत कौस रही थी कि वो मुझे इस भीड़-भाड़ वाले इलाके के इस छोटे से होटल में क्यों ले आया | अभी कुछ देर पहले ही सोच रही थी कि कल कोई और होटल शांत जगह पर देखूंगी | देखो मैं शायद आप लोगों से ही मिलने आई थी’, फिर सिर पर हाथ मारते हुए बोली ‘छोड़ो ये बातें, आयुष कहाँ है’|
हार्दिक जल्दी से कमरे से बाहर निकलते हुए बोला ‘आईये’ | हार्दिक के पीछे-पीछे वह आयुष के कमरे में प्रवेश करती है | दरवाजा खुलने की आवाज सुन आयुष और पुलकित अपनी-अपनी जगह से उठ खड़े होते हैं | आयुष और सोनाली दोनों एक दूसरे को ठगे से कुछ देर देखते रहते हैं | दोनों की आँखों से अविरल आंसू बहने लगते हैं | सोनाली अपनी आँखे पोंछ कर भाग कर आयुष को आलिंगनबद्ध कर लेती है | उन्हें इस परिस्थिति में देख हार्दिक पुलकित को इशारा करता है और फिर वह दोनों धीरे-धीरे कदम रखते हुए कमरे से बाहर आ कर कमरे का दरवाजा बंद कर देते हैं | हार्दिक पुलकित का हाथ पकड़ कर बोला ‘चल भाई हमने अपना काम कर दिया | अब इतने दिनों के बिछुड़े दोस्तों को आपस में बात-चीत करने दो | हमारा अब यहाँ ठहरना उचित नहीं है’ |
पुलकित ख़ुशी से झूमते हुए बोला ‘हाँ भाई तू सही कह रहा है | आज मुझे पहली बार इतनी ख़ुशी महसूस हो रही है कि मैं ब्यान नही कर सकता हूँ | बिछुड़ों को मिलाने का मजा ही कुछ अलग होता है’, कह कर पुलकित हार्दिक के साथ होटल से बाहर की ओर चल देता है |
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