पार्क में घुसते ही अंकित की नजर पार्क के बीचो-बीच लगे पानी के नल पर पड़ती है | काफी देर से पानी बहने के कारण वहाँ कीचड़ को देख वह ठिठक कर रुक जाता है | वह नल तक पहुँचने के लिए इधर-उधर ईंट या पत्थर ढूंडने लगता है ताकि उस पर पैर रख वह नल तक पहुँच सके | अचानक उसकी नजर दूर से आते रामू काका पर पड़ती है | उनके दोनों हाथ में ईंट देख अंकित हैरान हो जाता है | रामू काका के पास आते ही अंकित बोला ‘आपको कैसे पता लगा कि मैं नल बंद के लिए ईंट ढूंड रहा था’ |
रामू काका हँसते हुए बोले ‘बेटा, तुम्हे कीचड़ के पास खड़े बहते नल को देख कर कोई भी समझ जाएगा कि तुम क्या ढूंड रहे हो’ | अंकित बात अनसुनी कर जल्दी से रामू काका के हाथ से ईंट पकड़ कीचड़ में रख देता है | रामू काका कुछ बोल पाते इससे पहले ही अंकित नल बंद कर वापिस आते हुए बोला ‘देखा काका मैंने नल बंद कर ही दिया’ | रामू काका खुश होते हुए बोले ‘बेटा, पानी बहुत कीमती है | यह बात हमें तब समझ आएगी जब पानी पैसे दे कर भी नहीं मिलेगा | पानी बचाओ अभियान बहुत-से देश गंभीरता से लागू कर रहे हैं | लेकिन हमारे यहाँ तो राम राज्य है | जो करेगी सरकार करेगी | हम खुद कुछ नहीं करना चाहते हैं’ |
अंकित मुस्कुराते हुए बोला ‘हाँ, हमें स्कूल में भी बताया जाता है कि पानी बचाओ | लेकिन मुझे समझ नहीं आता है कि सब ऐसा क्यों कहते हैं | मैं अभी पिछले साल ही हरिद्वार गया था | गंगा नदी में तो बहुत पानी था’ |
रामू काका हँसते हुए बोले ‘बेटा, ऐसे तो समुद्र में बहुत पानी है | और समुद्र धरती के सत्तर प्रतिशत भाग में है | लेकिन बेटा, समुद्र का पानी खारा है और वो पीने लायक नहीं है | पीने का पानी या तो धरती के नीचे या फिर नदी का है और दोनों ही धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं’ |
अंकित गंभीर स्वर में बोला ‘लेकिन काका, पानी कम क्यों हो रहा है’ |
रामू काका मुस्कुराते हुए बोले ‘बेटा, हमें ईश्वर ने सब कुछ बहुत मात्रा में दिया है | उसमें पानी भी शामिल है | लेकिन हम पानी की कद्र नहीं कर रहे हैं और अपनी न समझी के कारण आधे से ज्यादा उसकी बर्बादी करते हैं | सिर्फ इस वजह से पानी कम होता जा रहा है | और ऐसे वह हमारी मदद क्यों करेगा | वैसे भी उसने हमें मदद के लिए पहले से एक फरिश्ता दे रखा है | जिस दिन उस फरिश्ते को अपनी ताकत का एहसास होगा | उस दिन हमारे सारे दुःख दूर हो जाएंगे’ |
अंकित हैरान होते हुए बोला ‘फरिश्ता ! कौन है और कहाँ है वो’ ?
रामू काका हँसते हुए बोले ‘तुम्हें मैं एक कहानी सुनाता हूँ | तुम खुद ही समझ में आ जाएगा कि कौन है और कहाँ है वह फ़रिश्ता | पुराने समय की बात है देहरादून शहर से दूर एक छोटा-सा गाँव था | वह दो कारणों से मशहूर था | एक कि उस गाँव से पहाड़ी इलाका शुरू होता था और दूसरा कि उस गाँव की सीमा के पास एक बहुत ही पुराना और बड़ा बरगद का पेड़ था | वह पेड़ सिर्फ इसलिए मशहूर नहीं था कि वह बहुत बड़ा और पुराना था बल्कि इसलिए मशहूर था कि उस पर पिछले कुछ साल से एक चुड़ैल आ कर बस गई थी | उस गाँव को उसके नाम से कम और बरगद की चुड़ैल के नाम से ज्यादा जाना जाता था | बहुत लोगों ने उस चुड़ैल को देखने की कोशिश की लेकिन जो भी वहाँ गया वह वापिस आकर कई महीनों तक बीमार पड़ा रहा | जब यह बात चारों तरफ फैली तो फिर किसी ने वहाँ जाने की कभी हिम्मत नहीं की |
एक साल उस पूरे इलाके में भयंकर सूखा पड़ा | बारिश का पूरा मौसम बीत चुका था लेकिन बारिश की एक बूंद तक न गिरी थी | वहाँ के कई किसान गाँव छोड़ कर रोजी-रोटी की तलाश में शहर चले गये थे | एक दिन जब देबू पड़ोस में खेल कर घर लौटा तो देखा कि घर में ताला लगा है | उसने आसपास के लोगों से पूछा तो पता चला कि उसके चाचा-चाची भी गाँव छोड़ कर शहर चले गये हैं | सब जानते थे कि उसके चाचा-चाची उसके साथ कैसा बर्ताव करते थे | ऐसे में वह अगर उसे यहाँ छोड़ गये तो कोई हैरानी की बात नहीं थी |
तीन साल पहले जब देबू दस साल का था तब उसके माता-पिता फसल बेचने घर से निकले थे लेकिन वापिस उनकी लाश ही आई थी | गाँव वापिस आते हुए उनकी एक रोड़ एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी | तब से देबू अपने चाचा-चाची के साथ ही रह रहा था | वह उसे दो-जून रोटी के लिए दिन भर घर और खेत का काम करवाते थे | उसका स्कूल जाना भी छूट गया था लेकिन फिर भी वह हिम्मती लड़का सब काम ख़ुशी-ख़ुशी करता था |
गाँव में एक ही कुआँ था और उसका भी पानी दिन-ब-दिन कम होता जा रहा था | सब को यह चिंता खाए जा रही थी कि अगर कुछ दिन और बारिश न हुई तो शायद पीने को पानी तक न मिलेगा | देबू रात में घर के आँगन में सो जाता और दिन में रोटी के लालच में पास-पड़ोस का कोई भी काम कर दिया करता था | लेकिन गाँव वाले ऐसे समय में चाह कर भी देबू को भर पेट खाना नहीं दे पा रहे थे |
एक रात देबू चाह कर भी सो नहीं पा रहा था | क्योंकि वह सुबह से भूखा-प्यासा था | ऐसे में नींद आती भी तो कैसे आती | पासा पलटते हुए अचानक उसे याद आया कि गाँव में आजकल हर जगह यह चर्चा हो रही है कि इस सूखे के बावजूद बरगद का पेड़ और उसके आसपास का सारा इलाका हरा-भरा है | देबू ने यह भी सुना था कि बरगद के पेड़ के पास एक कुआँ है जो हर समय पानी से लबालब भरा रहता है | उस कुएँ के आसपास बहुत से पेड़ हैं जिन पर बहुत ही मीठे फल हर मौसम में लगते हैं | लेकिन इतना सब कुछ जानने के बावजूद वहाँ जाने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा था |
ठंडा पानी और मीठे फल की बात याद आते ही देबू के मुँह में पानी आ जाता है | वह बुदबुदाया ‘पता नहीं चुड़ैल वाली बात सच है कि झूठ | जो भी हो यहाँ भूखे मरने से तो अच्छा है कि चुड़ैल के हाथों मर जाऊं | अगर वह नहीं हुई तो अपने मजे आ जाएंगे | मैंने तो दादी को देखा नहीं है लेकिन माँ जो कुछ भी दादी के बारे में बताती थी वो हू-ब-हू उस चुड़ैल से मेल खाता लगता है | ठीक है मैं सुबह होते ही वहाँ जाता हूँ’, कह वह आँख बंद कर लेता है |
सुबह होते ही देबू उस ओर निकल पड़ता है | वह बरगद के पेड़ के पास पहुँच कर बोला ‘दादी, आप कहाँ हो | दादी देखो मैं तुम से मिलने आया हूँ | मेरे माता-पिता को पहले भगवान जी ने अपने पास बुला लिया था और अब चाचा-चाची भी मुझे अकेला छोड़ कर शहर चले गये हैं | मैंने कल से कुछ खाया-पीया नहीं है | दादी… आप कहाँ हो’, कह कर वह जैसे ही आगे कदम बढ़ाता है | वैसे ही पेड़ के अंदर से आवाज आई ‘ऐ लड़के भाग जा यहाँ से, नहीं तो मैं तुझे खा जाउंगी | तू बच्चा है इसीलिए मैं भागने का एक मौका दे रही हूँ | जा चला जा यहाँ से’ |
एक बार तो देबू की जान हलक में आ जाती है | लेकिन वह हिम्मत कर एक बार फिर से बोला ‘दादी, भूखे रह कर तड़फ-तड़फ कर मरने से तो अच्छा है आप ही मुझे खा जाओ | इस अकाल में कम से कम आपका तो पेट भरेगा’ | काफी देर तक जब अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो वह कुछ और कदम आगे बढ़ता ही है कि पेड़ के पीछे से एक बहुत ही डरावनी औरत उसकी ओर आती दिखी | सफेद साड़ी और सफेद बालों के बीच से झांकता हुआ काला चेहरा देख देबू के रोंगटे खड़े हो जाते हैं | गुस्से से लाल हो गई आँखों से घूरते हुए वह औरत बोली ‘तू अभी तक यहीं खड़ा है | मरना चाहता है क्या’ ?
हिम्मत कर देबू अटकते हुए बोला ‘दादी, कुछ खाने को दे दो | मैं बहुत भूखा हूँ’, कह कर वह सुबक उठा | वह औरत धीमी आवाज में बोली ‘लड़के तुझे डर नहीं लगता | मैं चुड़ैल हूँ | मैं तुझे खा जाउंगी | जा भाग जा यहाँ से’ | देबू उस औरत की धीमी आवाज सुन समझ गया कि वह कोई चुड़ैल नहीं है | वह एक बार फिर से हिम्मत कर बोला ‘दादी, आप चुड़ैल नहीं हो | चुड़ैल होती तो अभी तक मुझे खा चुकी होती’, कह कर वह उसके पैरों में गिर जाता है |
कुछ देर वह औरत चुप-चाप खड़ी देबू को देखती रहती है | फिर वह कुछ सोच वह पलटते हुए बोली ‘मैं तेरी दादी नहीं हूँ | मैं एक चुड़ैल हूँ लेकिन बच्चों को नहीं खाती | और इससे पहले कि मेरा दिल तुझे खाने को हो जाए तू जल्दी से खा-पी कर यहाँ से चला जा’ |
देबू यह सुनते ही ख़ुशी से झूम उठता है लेकिन वह बिना कुछ बोले चुपचाप उस औरत के पीछे-पीछे चल देता है | वह औरत उसे बरगद के पेड़ के पीछे ले जाती है | वह वहाँ रखी एक टोकरी देबू को देते हुए बोली | जितना फल खाना है खा ले मैं जब तक तेरे लिए पानी ले कर आती हूँ | देबू फल की टोकरी जल्दी से पकड़ कर फल खाने लग जाता है | फल खाते हुए अचानक उसकी नजर उस औरत पर पड़ती है | वह हाथ में पानी का गिलास लिए एक टक उसे देख रही थी | देबू ने ध्यान से देखा तो उस औरत की आँखों से आँसू टपक रहे थे |
उस औरत को रोता देख वह फल छोड़ भाग कर उस से लिपटते हुए बोला ‘मैं न कहता था कि आप चुड़ैल नहीं मेरी दादी हैं | अब मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा | गाँव में मेरा कोई नहीं है’, कह कर वह भी रोने लगता है | वह औरत उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ‘ठीक है, ये ले पहले पानी पी ले’, कह कर रामू काका चुप कर जाते हैं |
रामू काका के चुप करते ही अंकित बोल उठा ‘काका, मैं समझ गया कि वह फ़रिश्ता कौन है | माँ भी कई बार कहती है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं | ठीक है काका, मैं आज और अभी से पानी बचाने का काम शुरू करूँगा | लेकिन एक बात बताइए कि क्या सचमुच भूत-प्रेत होते हैं’ |
रामू काका हँसते हुए बोले ‘बेटा, डर भूत-प्रेत से भी बड़ा होता है’ |