अंकित घास को पैर से ठोकर मारते हुए चल रहा था कि अचानक वह पास से आती रामू काका की आवाज सुन ठिठक कर रुक जाता है | रामू काका उसके पास आते हुए बोले ‘क्या बात है ? आज मेरा दोस्त बहुत गुस्से में है’ | अंकित हैरान होते हुए बोला ‘आपको कैसे पता लगा कि मैं गुस्से में हूँ’ |
रामू काका हँसते हुए बोले ‘ये बात तो कोई भी समझ सकता है कि इस मासूम घास को ठोकर मारने वाला गुस्से में ही होगा | खैर, ये बताओ कि इतने गुस्से में क्यों हो’ | अंकित मासूम-सा चेहरा बना कर बोला ‘मेरे दोस्त जतिन को तो आप जानते ही हो | उसके पापा का जम्मू ट्रांसफर हो गया है | हम पिछले तीन महीने से मिले तक नहीं हैं और अब मिल भी नहीं पाएंगे’ |
रामू काका गंभीर स्वर में बोले ‘ओह ! ये तो बहुत बुरा हुआ | लेकिन गुस्सा करने से क्या होगा | इसमें न तो तुम कुछ कर सकते हो और न तुम्हारा दोस्त कुछ कर सकता है | जब कोई कुछ कर ही नहीं सकता तो फिर गुस्सा या अफ़सोस करना भी बेकार है | जल्द ही कोई न कोई और तुम्हारा दोस्त बन जाएगा’ |
यह सुनते ही अंकित बिफर कर बोला ‘काका आप भी कैसी बात करते हो | ऐसे कैसे कोई भी मेरा इतना अच्छा दोस्त बन जाएगा’ |
रामू काका मुस्कुराते हुए बोले ‘नहीं मानते तो कोई बात नहीं | मत मानो | आओ यहाँ बैठो मैं तुम्हें रचित नामक लड़के की कहानी सुनाता हूँ | रचित तुम्हारी उम्र का ही था | एक दिन वह अपनी स्कूल बस से उतर कर घर की ओर चला तो एक कुत्ते का पिल्ला जोकि वहीं खड़ा था वह भी उसके पीछे-पीछे चल दिया | रचित ने उसे कई बार भगाने की कोशिश की लेकिन वह पिल्ला नहीं माना | रचित भागते हुए अभी घर के पास ही पहुँचा था कि माँ को घर के बाहर खड़ा देख वह भाग कर माँ से लिपट जाता है | माँ उसे अलग करते हुए बोली ‘क्या बात है रचित तुम इतना हाँफ क्यों रहे हो’ | रचित हाँफते हुए बोला ‘ये मेरे पीछे पड़ गया है’ | माँ ने देखा कि चितकबरे रंग का पिल्ला पूंछ हिलाते हुए बहुत ही मासूमियत से उन दोनों को देख रहा था | माँ हँसते हुए बोली ‘इतने से बच्चे से डर कर भाग रहे थे | देखो वो प्यार से कैसे पूंछ हिला रहा है | मुझे लगता है ये भूखा होगा | आओ इसे थोड़ा-सा दूध दे देते हैं | दूध पी कर अपने आप चला जाएगा’, कह कर माँ रचित के साथ अंदर आ जाती है | वह पिल्ला वहीं गेट पर सिर रख कर बैठ जाता है |
वह पिल्ला दूध पीने के बाद भी वहाँ से नहीं गया | और कुछ ही दिन में वह उनके परिवार का हिस्सा बन गया था | वह पिल्ला रोज सुबह रचित के साथ स्कूल बस तक जाता और दोपहर तक वह वहीं बैठा रहता | जब रचित आता तो वह पिल्ला ख़ुशी से झूम उठता | वह ख़ुशी में रचित के चारों ओर चक्कर लगाता | घर वापिसी करते हुए कभी वह रचित से आगे निकल जाता तो कभी पीछे की ओर भाग पड़ता | उसे देख कर कोई भी समझ सकता था कि वह पिल्ला रचित की वापिसी से कितना खुश है | लगभग तीन महीने तक यही सिलसिला चलता रहा और फिर एक दिन अचानक वह गायब हो गया | वह सुबह रचित के साथ स्कूल बस तक तो गया लेकिन रचित के आने पर वह आसपास कहीं नहीं दिखा | रचित व उसकी माँ ने आसपास बहुत खोजने की कोशिश की लेकिन उसका कहीं अता-पता नहीं चला | थक हार कर उन्होंने कई दिन खोजने के बाद आस छोड़ दी |
रचित ने कई दिन तक ठीक से खाना नहीं खाया | घर के बाहर किसी भी कुत्ते की आवाज आती तो वह भाग कर बाहर जाता और जब उसे न पाता तो रोते हुए वापिस आ बिस्तर पर लेट जाता | रचित के माता-पिता उसका हाल देख कर बहुत दुखी थे | वह चाह कर भी उसे समझा नहीं पा रहे थे | उन्होंने हर सम्भव कोशिश की लेकिन रचित कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था | एक दिन रचित शाम के समय अपनी बालकनी में खड़ा सामने पार्क में खेलते बच्चों को देख रहा था तभी अचानक एक तोता आकर उसके पास बैठ जाता है | रचित डरते हुए अपना हाथ आगे करता है तो वह तोता उसके हाथ के पास आकर बैठ जाता है | तोते को ऐसा करते देख रचित जोर से चिल्लाया ‘माँ, माँ…. जल्दी आओ’ | माँ उसकी तेज आवाज सुन भाग कर आती है | वह हाँफते हुए बोली ‘क्या हुआ बेटा ? कौन है ? ऐसे क्यों चिल्ला रहे हो’ |
रचित अपने हाथ की तरफ इशारा करते हुए बोला ‘देखो, इधर देखो’ | माँ देखती है कि एक बहुत ही सुंदर तोता रचित के हाथ के पास बैठा गर्दन टेडी कर उसे देख रहा था | माँ मुस्कुराते हुए बोली ‘लगता है ये किसी का पाला हुआ तोता है | पिंजरा खुला देख भाग आया होगा’ | वह उसके पास जाकर बोली ‘क्यों मिठ्ठू मियां कुछ खाओगे’ | वह तोता बोला ‘मिठ्ठू मियां कुछ खाओगे’ | उसकी बात सुन पहले तो दोनों को कुछ समझ नहीं आया | लेकिन जब वह दुबारा बोला तो दोनों ख़ुशी से झूम उठे | रचित बोला ‘माँ, ये तो बोलता है’ | तोता बोला ‘माँ, ये तो बोलता है’ | रचित उसकी बात सुन नाचने लगता है |
माँ उसकी ख़ुशी देख कर झूम उठती है | रचित बहुत दिन के बाद खुश नजर आ रहा था | उसे खुश देख माँ बोली ‘मैं अभी कुछ खाने को लाती हूँ’ | उस दिन वह तोता रोटी खा कर उड़ जाता है | लेकिन दूसरे दिन सुबह-सुबह खिड़की के पास आकर अपनी आवाज में चिल्लाने लगता है | माँ, रचित के कमरे की खिड़की खोल कर रचित को जगाते हुए बोली ‘रचित उठ, देख तेरा मिठ्ठू आज फिर आ गया है’ | रचित माँ की बात सुनते ही एक झटके से उठ कर बैठ जाता है | वह खिड़की के पास आकर बोला ‘माँ, मैंने कल पढ़ा था कि इन्हें अमरुद और मिर्चा बहुत पसंद होती है’ | माँ रचित का खुश चेहरा देख उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ‘देखती हूँ | शायद एक अमरुद तो पड़ा होगा’ |
रचित कुर्सी खींच कर जब तक खिड़की के पास लाता है तब तक तो उस तोते के कई और साथी खिड़की पर आकर बैठ जाते हैं | वह खुश होकर माँ को पुकारने ही लगता है कि माँ अमरुद के कई टुकड़े लेकर कमरे में आते हुए बोली ‘अरे वाह ! ये तो आज अपने दोस्तों के साथ आया है’ | रचित, माँ को देख कर बोला ‘माँ कहीं ये भी उस कुत्ते की तरह गायब न हो जाए | क्यों न हम इसे पाल लें’ | माँ, रचित की बात सुन कर गंभीर भाव से बोली ‘बेटा, कुत्ते और पक्षी में फर्क होता है | कुत्ता एक पालतू जानवर है | लेकिन भगवान ने पक्षी के पंख इसीलिए बनाए हैं ताकि ये खुले आसमान में उड़ सकें | इन्हें पिंजरे में कैद करके जो मर्जी खिला-पिला दो लेकिन ये खुश तभी होंगे जब ये उड़ पाएं | बेटा ये किसी का पाला हुआ था | तभी तो ये बोलना जानता है | लेकिन आज ये खुश इसीलिए है क्योंकि ये आजाद है | इसे प्यार से खिलायेगा तो देख लेना ये रोज यहाँ आ जाएगा | बेटा, इंसान हो या पशु-पक्षी सब प्यार की भाषा जानते हैं | लेकिन प्यार, आजादी के साथ हो सिर्फ तभी | कैद में कितना भी प्यार मिले उसकी कोई कीमत नहीं है’ | रचित, माँ की बात सुन खुश हो कर बोला ‘ठीक है, माँ हम ऐसा ही करेंगे’ |
रामू काका कहानी सुना कर बोले ‘अंकित बेटा, आज दस साल होने को हैं और वह तोता और उसके साथी हर सुबह-शाम उनके घर आते हैं | अब तो कई और तोते भी इंसानों की भाषा बोलने लगे हैं | इसीलिए कहता हूँ कि चिंता मत करो | एक दोस्त बिछुड़ा है तो कोई न कोई और दोस्त मिल जाएगा | और वैसे भी आज के जमाने में फ़ोन है तो फिर कैसी दूरी’ | रामू काका की बात सुन कर अंकित उनके गले लग जाता है |