महिंदर सिंह जब से आया है | उसका दिन तो किसी तरह निकल जाता है लेकिन रात ज्यादतर बिस्तर पर दाएं से बाएं पासे पलटने में ही गुजरती है | रात को जब कभी बैचैनी बढ़ जाती है तो वह उठकर पार्क के चक्कर लगाने निकल जाता है | जब कभी चक्कर लगाते-लगाते थक जाता तो वहीं पत्थर के बेंच पर बैठ आसमान को या फिर अंधेरे में घंटों पत्थर बने देखता रहता | उसे ऐसा करते देख उसके साथ कमरे में रह रहे सुधीर वर्मा ने एक रात महिंदर सिंह को कहा ‘आप नाहक ही चिंतित हैं आप अपने पीछे कुछ भी छोड़ कर नहीं आए हैं | जो आपका था ही नहीं उसके लिए परेशान होने की क्या जरूरत है’ | महिंदर सिंह को कभी भी अपनी निजी ज़िन्दगी में किसी की दखलंदाज़ी पसंद नहीं थी तो यहाँ कैसे हो पाती | वह सुधीर वर्मा की बात सुन भड़क उठा और तीखे स्वर में बोला ‘आपसे किसी ने राय माँगी है क्या ? आप कृपया अपने काम से काम रखें | मेरी निजी ज़िन्दगी में झाँकने की कोई आवश्यकता नहीं’ | यह सुन सुधीर अपने बिस्तर से उठा और महिंदर के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ‘भाई यहाँ किसी की कोई निजी ज़िन्दगी नहीं है | यहाँ सब अपने हैं इसलिए जितनी जल्दी यहाँ सबको अपना लोगे उतना तुम्हारे लिए अच्छा होगा’ | यह सुन कर महिंदर के तन-बदन में आग लग जाती है | वह सुधीर का हाथ झटकते हुए बोला ‘भाषण देने की जरूरत नहीं | जा अपने बिस्तर पर वरना….’, कह कर महिंदर चुप कर जाता है | सुधीर, महिंदर का तमतमाया चेहरा देख चुपचाप अपने बिस्तर पर आ कर लेट जाता है |
उस रात के बाद से सुधीर वर्मा ने महिंदर सिंह से दुबारा कुछ भी कहने की हिम्मत तो नहीं की | लेकिन महिंदर सिंह देखा करता था कि वह जब भी बैचैन हो रात को पार्क में टहलने जाता तो सुधीर कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो उसे तब तक देखता रहता था जब तक कि वह वापसी नहीं करता था | उसे वापिस आते देख सुधीर वर्मा भाग कर बिस्तर जा लेटता था | शुरू-शुरू में तो उसकी हरकत देख महिंदर को गुस्सा आता था | लेकिन धीरे-धीरे महिंदर सिंह को उसकी वह हरकत अच्छी लगने लगी थी | उसे महसूस हुआ कि इस अनजान जगह पर सुधीर वर्मा चुपचाप उसकी कितनी चिंता करता है | जब तक वह सोता नहीं है तब तक सुधीर भी सोता नहीं है |
पिछले तीन-चार दिन से महिंदर को न चाहते हुए भी अपनी दोनों पोतियों की याद सताने लगी थी | उसका दिल किसी अनजान डर से हर समय बैचैन रहता था | एक शाम जब काफी बैचैनी महसूस होने लगी तो वह उठा और पार्क के चक्कर लगाने निकल गया | रात आठ बजे जब उसका एक साथी उसे खाने के लिए बुलाने आया तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि आज उसका पेट कुछ खराब है इसलिए उसका खाने को मन नहीं है | रात दस बजे तक चक्कर लगाने के बाद जब वह थक गया तो वहीं एक बेंच पर बैठ आँख बंद कर आराम करने लगा | आराम करते-करते कब वह अपनी पुरानी यादों में खो गया उसे पता ही नहीं लगा |
महिंदर सिंह की शादी हुए अभी दो वर्ष ही हुए थे कि पत्नी गर्भवती हो गई | महिंदर सिंह की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था जब डॉक्टर ने बताया कि उसकी पत्नी के गर्भ में एक नहीं दो बच्चे पल रहे हैं | एक साथ दो लड़के पाकर पति-पत्नी दोनों बहुत ही खुश थे | लेकिन उनकी ख़ुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई | दोनों बच्चे काफी कमजोर पैदा हुए थे | जिस कारण वह ज्यादात्तर बीमार रहने लगे | हर सम्भव देखभाल और इलाज के बावजूद उनके गिरते स्वस्थ को देख वह दोनों हर समय एक अनजान डर से ग्रसित रहते थे |
उनकी सलामती और स्वस्थ की मन्नत लिए वह दोनों शायद ही किसी धार्मिक स्थल में न गए हों | जो भी जिस भी धार्मिक स्थल या पवित्र जगह का नाम लेता वह अगले ही पल चल पड़ते थे | उनकी दुआ कबूल हुई और दोनों बच्चे बढ़ती उम्र के साथ दूसरे बच्चों की तरह स्वास्थ्य रहने लगे थे | पहली बार बच्चों के मुँह से तोतली आवाज में मम्मी व पापा सुन वह ख़ुशी से पागल हुए जाते थे |
समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है | ऐसा ही कुछ महिंदर सिंह की जिन्दगी में भी हुआ | दोनों बच्चे बहुत होनहार निकले | बाहरवीं कक्षा में उच्च स्थान पाकर जब दोनों बेटे कंप्यूटर में बीटेक करने के लिए बेंगलुरु गए तो पति-पत्नी को कई रात नींद नहीं आई | न जाने कितने ही दिन उन्होंने तीन वक्त का खाना तक नहीं खाया | लेकिन उन्होंने कभी भी न तो बच्चों को यह जाहिर होने दिया और न कभी बेवजह उन्हें फ़ोन कर परेशान किया | वह दोनों बच्चों के फ़ोन के इन्तजार में रात-रात भर सोते न थे | छुट्टियों में जब भी बच्चे घर आते तो दोनों पति-पत्नी के लिए वह कुछ दिन दिवाली से कम न होते थे | उन कुछ दिनों तो उनके पैर जमीन पर न पड़ते थे | उनका लाड़-प्यार देख बच्चे भी ख़ुशी से झूम उठते थे | दोनों बेटे भी अपने माँ-बाप से बहुत प्यार करते | हर बार छुट्टी खत्म होने पर जब भी बच्चे वापिस जाते तो कुछ दिन उनके घर मातम पसरा रहता | पति-पत्नी दोनों एक दूसरे को झूठा दिलासा दिया करते कि हमें बच्चों की तरक्की में रोड़ा नहीं बनना चाहिए | इसी तरह चार साल दोनों ने यह सोच कर बिता दिये कि बीटेक कर तो बच्चे उनके पास ही रहेंगे | लेकिन बीटेक करते ही दोनों बच्चों की नौकरी पूणे की एक बहुत अच्छी कम्पनी में लग गई | पति-पत्नी फिर से अकेले हो गए |
नौकरी लगने के कुछ समय बाद ही दोनों बेटों ने एक दिन फ़ोन पर सूचित किया कि वह दोनों शादी कर जल्द ही अमेरिका जा रहे हैं | पति-पत्नी दोनों ही भारी मन से एक मेहमान की तरह शादी में शामिल हुए और आशीर्वाद दिया | दोनों अन्दर ही अन्दर दुःखी थे लेकिन जितने दिन भी वहाँ रहे बच्चों पर दुःख जाहिर नहीं होने दिया और चुपचाप घर वापिस आ गए |
दोनों बच्चे शादी के कुछ समय बाद ही अमेरिका चले गये | वह दोनों उनकी तरक्की देख-देख खुश होते रहते थे | रिश्तेदारों व पास-पड़ोस में दोनों बच्चों की तारीफ़ कर-कर के वह कभी थकते न थे | जबकि घर वापिस आ कर दोनों एक दूसरे को दिलासा दिया करते थे कि एक दिन बच्चों को हमारी याद वापिस हिन्दुस्तान जरूर लाएगी |
दोनों बेटों के यहाँ शादी के दो साल के अंदर ही एक-एक लड़की का जन्म हुआ लेकिन दोनों ने न उन्हें वहाँ बुलाया और न ही वह खुद आए | इसी तरह छह साल बीत गए लेकिन दोनों बेटों में से कोई भी वापिस नहीं आया | पहले तो महीने में एक-दो बार उनका फ़ोन आ जाया करता था लेकिन धीरे-धीरे वह भी आना बंद हो गया | यह देख एक दिन महिंदर सिंह के दिमाग में विचार आया कि क्यों न हम फिर से उनकी सलामती और वापिसी की मन्नत मांगे | जब उन्होंने अपनी पत्नी को यह विचार सुनाया तो वह बहुत ही खुश हुई और एक बार फिर से उनकी धर्मिक स्थलों की यात्रा का सिलसिला शुरू हो गया |
इस बार भी उनकी मन्नत जल्द ही काबुल हुई और उसी साल दोनों बेटे परिवार समेत कुछ समय के लिए भारत आए | पोता-पोती का दादा-दादी से लगाव की कहावत सच साबित हुई | दोनों पोतियाँ दादा-दादी से ऐसे मिलीं जैसे बरसों से जानती हों | वापिस जाते हुए दोनों ऐसे रो रहीं थीं जैसे बरसों से उनके साथ रह रहीं हों | बच्चों के जाने के बाद इस बार भी वैसा ही सन्नाटा छा गया जैसे पहले हुआ करता था | अगले साल जब बच्चे आए तो वह अपने साथ एक लैपटॉप भी लेकर आये और महिंदर सिंह और उनकी पत्नी को किस तरह ऑनलाइन बात की जाती है सिखा कर गए | अब तो उनके घर हर हफ्ते दीवाली आती थी जब उनकी बात अपनी पोतियों से हो जाया करती थी |
इसके बाद तो बच्चों का हर वर्ष भारत आने का सिलसिला शुरू हो गया | लेकिन कुछ वर्ष के बाद ऑनलाइन सम्पर्क व भारत आने का सिलसिला अचानक रुक गया | दोनों ने अपने बेटों से काफी सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन दोनों ही हर बार किसी न किसी बहाने से फ़ोन काट दिया करते थे |
चार साल बीत गए लेकिन बच्चों की कोई खोज-खबर नहीं मिली | महिंदर सिंह की पत्नी यह सहन नहीं कर पा रही थी | धीरे-धीरे वह अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी | उसकी हालत देख महिंदर चाह कर भी अपने दुःख को जाहिर नहीं कर पाता था | एक दिन अचानक महिंदर सिंह की पत्नी रसोई में खाना बनाते-बनाते बेहोश हो गई | वह पड़ोसियों की मदद से उसे अस्पताल ले गया | वहां डॉक्टर ने जब बताया कि उनकी पत्नी को उच्च रक्तचाप होने के कारण ब्रेन हेमरेज हो गया है तो वह बेहोश होते-होते बचा | उसी रात उसने बच्चों को यह खबर दी लेकिन कोई भी वापिस नहीं आया | कुछ ही दिन में पत्नी स्वर्ग सिधार गई लेकिन फिर भी दोनों बेटे छुट्टी न मिलने का बहाना बना घर नहीं आए |
पत्नी के जाने के बाद कुछ दिन तक पास-पड़ोस के लोग खाना-पीना और देखभाल करते रहे लेकिन वक्त के साथ-साथ यह सिलसिला भी जब टूटने लगा तो न चाहते हुए भी महिंदर सिंह ने अपने बड़े बेटे को अपनी व्यथा यह सोच कर सुनाई कि वह उसे अपने पास बुला लेगा | लेकिन उसे जिन्दगी का सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बेटे ने यह कहा कि वह भी सोच रहा था कि अब क्या किया जाए | यह सुन वह खुश होते हुए बोला कि बेटा फिर क्या फैसला किया | बेटे ने बहुत ही सधारण भाव से बोला कि पापा मेरा एक दोस्त है उसके पिता जी भी अकेले थे तो उसने उन्हें एक बहुत अच्छे वृधा आश्रम में भेज दिया था | वह अब बहुत ही खुश हैं | उन्हें अब अकेलापन नहीं सताता | मैं सोच रहा था कि आप भी ऐसा ही करिए जब तक मैं आपके बारे में अपनी पत्नी और भाई से बात करता हूँ | यह सुन महिंदर के पाँव के नीचे से जमीन ही खिसक गई | आँसुओं की अविरल धारा बहने लगी और वह चाह कर भी आगे कुछ न बोल पाया और फ़ोन रख वहीं बिस्तर पर लेट गया |
उस रात वह बिस्तर पर पत्नी की तस्वीर रख कई घंटे रो-रो कर अपनी व्यथा सुनाता रहा | कब उसे नींद ने अपने आगोश में ले लिया उसे पता ही नहीं लगा | सुबह उठ उसने अपने बेटे की बात को अम्ल में लाते हुए अपने घर के सारे सामान को बेचने और वृधा आश्रम जाने की ठान ली |
अभी उसे वृद्ध आश्रम में आए कुछ ही दिन हुए थे कि एक रात जब वह पार्क में चक्कर लगा रहा था तो सुधीर वर्मा ने आकर बताया कि उसके छोटे बेटे का फ़ोन आया है | पहले तो उसने बात को अनसुना कर दिया लेकिन बार-बार सुधीर वर्मा के आग्रह करने पर वह कमरे में रखे फ़ोन को बेदिली से सुनने चला ही गया | बेटे की बात सुन कर जिन्दगी का आखिरी झटका भी चुपचाप सह लिया | बेटे का कहना था कि अब आप जब वृधा आश्रम आ ही गये हैं तो फिर उस घर का आप या हम क्या करेंगे | हम दोनों ने यह सोचा है कि क्यों न उसे बेच ही दिया जाए | हम सब तीन-चार दिनों में आ रहे हैं | वह सुधीर वर्मा के कारण ठीक-ठीक बोलता रहा और फिर फ़ोन रख वापिस पार्क में आ गया | पार्क में आ कर वह काफी देर बेंच पर बैठ रोता रहा और अपनी पत्नी को कोसता रहा कि वह अकेली क्यों चली गई |
अचानक ठंड लगने पर महिंदर की आँख खुली तो उसने पाया कि वह वहीं पार्क के बेंच पर लेटा हुआ था | उसने अपने आप को सम्भालते हुए उठ कर आँखे पोंछी और दूर अपने कमरे की ओर देखा | आज उसे दरवाजे पर सुधीर वर्मा खड़ा नहीं दिखा | उसे बहुत हैरानी हुई कि वह आज क्यों नहीं है | रोज उसे खड़ा देख चिढ़ होती थी लेकिन आज जब उसे उम्मीद थी तो वह वहां नहीं था | कमरे की ओर जाते हुए उसने फैसला किया कि वह आज सुधीर से बात करेगा और उसे अपने दिल का हाल बताएगा | अब एक वही तो उसका साथी और सहारा है | जिन्हें अपना समझा था वह तो पराए निकले |
कमरे में पहुँच उसने देखा कि उसके व सुधीर वर्मा के बिस्तर के बीच मेज पर रखा फ़ोन जमीन पर गिरा पड़ा था और मेज पर सुधीर वर्मा का हाथ था | वह आँख बंद कर शांत भाव से सोया हुआ था | महिंदर ने सुधीर को नींद से जगाना उचित नहीं समझा और धीरे से फ़ोन मेज पर रख लेट गया |