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किस्मत – अंतिम भाग

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शोभना ऑफिस तो आ जाती है लेकिन उसका मन ऑफिस में भी नहीं लग रहा था | एक ही सोच उसे बार-बार परेशान कर रही थी कि अपने घर वालों को वह कैसे बताए कि उसके प्यार ने भी उसे धोखा दे दिया है | ऑफिस में सारा दिन कैसे बीत जाता है उसे पता ही नहीं लगता | वह अपनी ही यादों में खोई हुई घर पहुँच जाती है | रात को अनमने ढंग से खाना खा वह अभी अपने कमरे में आई ही थी कि उसका फ़ोन बज उठा | उसने फ़ोन उठा कर देखा तो एक अनजान नंबर से दस मिस्ड कॉल आई हुयीं थी | उसने बेमन से फ़ोन उठा ‘हेलो’ बोला ही था कि दूसरी तरफ से आवाज सुन उसकी ख़ुशी का ठीकाना ही नहीं रहा और उसकी आँखों से अविरल आंसू बहने लगे |

शोभना बहुत मुश्किल से ‘हां’ बोल पाई | दूसरी तरफ से प्रवेश चिंतित हो बोला ‘क्या हुआ, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो | क्या हो गया है’ |

शोभना भर्राई आवाज में बोली ‘कुछ नहीं बोलो, तुम कहाँ खो गये थे’ | ऐसी आवाज सुन प्रवेश कांपती आवाज में बोला ‘सब कुछ ठीक तो है’, ‘हूँ’ की आवाज सुन वह फिर से बोला ‘मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया था | मुझे अभी दो-चार दिन ही हुए थे मकान बदले कि घर से फ़ोन आ गया कि मेरी माँ को दिल का दौरा पड़ा है जल्दी आ जाओ | मैं उसी दिन अपने घर को निकल पड़ा’ |

शोभना गंभीर स्वर में बोली ‘तुम्हारा फ़ोन कहाँ है’?

प्रवेश बोला ‘फ़ोन जल्दी में घर ही छूट गया था’ |

‘ओह ! अब माँ का क्या हाल है’ ?

यह सुन प्रवेश भर्राई आवाज में बोला ‘माँ……..माँ बस मरते-मरते बची हैं’ |

‘ओह’!

‘आज ही घर आई हैं | बस इसीलिए तुम्हें फ़ोन नहीं कर सका’ | शोभना सकपकाते हुए बोली ‘अब क्या प्लान है’ |

‘वही जो सोचा था | मैं कल सुबह दिल्ली के लिए निकलूंगा | आजकल कोहरा बहुत है ट्रेन तो बहुत लेट चल रही हैं | इसलिए मैं यहाँ से अपनी कार में ही आ रहा हूँ’ |

शोभना खुश होते हुए बोली ‘इतने कोहरे और ठंड में खुद इतनी दूर से चला कर क्यों आ रहे हो’ |

‘नहीं, मैं नहीं चलाऊंगा | घर में जो ड्राईवर है वही मुझे दिल्ली छोड़ जाएगा’ |

यह सुन शोभना खुश होते हुए बोली ‘यहाँ भी एक घटना हो गई है’, कह कर उसने प्रवेश को नितिन और माँ की बातें विस्तार से बता दीं |

प्रवेश खुश होते हुए बोला ‘अरे वाह ! क्या बात है | मजा ही आ गया’ |

यह सुन शोभना गुस्से में बोली ‘अब तुम्हें मजा आ रहा है | इतने दिन से मेरी तो जान निकली पड़ी थी | तुमने एक बार भी मेरे बारे में सोचा | तुम फ़ोन कर के भी तो ये सब बोल सकते थे | मुझे तो बार-बार यही लग रहा था कि तुम मुझे मुसीबत में छोड़ कर भाग निकले हो | आज दिन भर मैं यही फैसला करती रही कि अब मुझ से और सहन नहीं होगा | मुझे आत्महत्या ही कर लेनी चाहिए’ |

‘अरे पगली आज बोल दिया अब आगे कभी मत बोलना | मैंने पहले भी कहा था कि मैं शादी करूँगा तो तुम से ही करूँगा | अगर कभी मर भी गया तो भी आऊंगा मेरा इन्तजार जरूर करना’ |

‘मेरे पास कोई चारा भी तो नहीं था | ऐसे मैं अपने घर वालों को क्या बोलती’, कह कर शोभना सिसक-सिसक कर रो देती है |

‘चलो अब तो सब ठीक हो गया | अब क्यों रो रही हो | अब तो खुश हो जाओ’ |

शोभना अपने आंसू पोंछते हुए बोली ‘कल कब तो पहुंचोगे’ ? यह सुन प्रवेश चहकते हुए बोला ‘तीन-चार तो बज ही जाएंगे’ | ‘ठीक है कल मिलते हैं’, कह कर शोभना ख़ुशी-ख़ुशी फ़ोन रख कर बैठे-बैठे झूमने लगती है |

दिसम्बर महीने का अंतिम सप्ताह चल रहा था | ठण्ड के साथ-साथ कोहरे का कहर पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ था | दोपहर एक बजे के लगभग प्रवेश का फ़ोन आया कि वह अब भटिंडा से निकला है | उसने बताया कि आज यहाँ सुबह से ही बहुत ज्यादा कोहरा है | छेह से सात घंटे में वह दिल्ली पहुँच जाएगा | शोभना यह सुन कर खुश थी |

रास्ते में रोहतक के पास प्रवेश की गाड़ी खराब हो जाती है | यही बात बताने के लिए उसने कई बार शोभना को फ़ोन किया लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया | दिल्ली पहुँचते-पहुँचते रात के ग्यारह बज गये थे | इसीलिए प्रवेश शोभना के घर न जाकर अपने घर आ जाता है | घर पहुँचते ही उसने अपने पुराने मोबाइल को चार्ज कर एक बार फिर से फ़ोन किया लेकिन घंटी बजती रही लेकिन शोभना ने फ़ोन नहीं उठाया | सुबह उसने उठकर जब फिर से फ़ोन करने की कोशिश की तो उसका फ़ोन बंद था | वह जल्दी से तैयार हो शोभना से मिलने उसके घर चल देता है |

शोभना के घर पहुँचने पर उसने देखा कि उसके घर के बाहर काफी भीड़ लगी हुई थी | वह भीड़ में रास्ता बनाते हुए उसके घर के अंदर पंहुचा तो देख कर हैरान रह गया कि शोभना की लाश सफ़ेद कपड़े में लिपटी हुई ज़मीन पर पड़ी थी | उसके परिवार का रो-रो कर बुरा हाल था | प्रवेश को समझ में नहीं आ रहा था कि शोभना के साथ ऐसा कैसे हो सकता है | उसने पास खड़े व्यक्ति से पूछा कि शोभना को क्या हुआ था | उस व्यक्ति ने जो भी बताया वह और भी हैरान करने वाला था | उस व्यक्ति ने बताया कि शोभना किसी लड़के से प्यार करती थी और उससे उसकी शादी होने वाली थी लेकिन कल रात रोहतक के पास उस लड़के का सड़क हादसे में देहांत हो गया था | जिसे वह सहन नहीं कर पाई और आत्महत्या कर ली |

यह सुन वह जोर से चिल्लाया ‘ऐसे कैसे हो सकता है | वह लड़का तो मैं हूँ और मैं जिन्दा हूँ’ | उस कमरे में बैठे और खड़े सब लोग हैरानी से प्रवेश को देखते हैं | शोभना के पिता यह सुन कर जोर से चिल्लाए ‘यह कैसे हो सकता है | रात के नौ बजे के लगभग शोभना के फ़ोन की घंटी बजी थी | उसने तुम्हारा नंबर देख कर ही जल्दी से फ़ोन उठाया था | दूसरी तरफ से किसी और की आवाज सुन शोभना ने सम्भल कर हेलो बोला | दूसरी तरफ वाला व्यक्ति बोला कि क्या आप इस व्यक्ति को जानती हैं जिसका यह फ़ोन है | धड़कते दिल से शोभना ने हां बोला | उस व्यक्ति ने प्रवेश से उसका रिश्ता पूछा तो वह बोली वह मेरे दोस्त हैं | यह सुन उस व्यक्ति ने अपना परिचय दिया कि वह हरियाणा पुलिस से बोल रहा है | यह फ़ोन जिस भी व्यक्ति का है उसकी एक्सीडेंट में मौत हो गयी है | इसके आगे शोभना कुछ भी सुन नहीं पाई | वह उस समय हमारे पास ही बैठी थी और जोर से चिल्लाते हुए अपने कमरे में चली गई थी कि प्रवेश की रास्ते में दिल्ली आते हुए एक्सीडेंट में मौत हो गई है | वह अपने कमरे में बिस्तर पर कितनी ही देर मूर्ति बन बैठी रही | हमें तो पता ही नहीं चला कि कब उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और यह सब कर लिया’, यह कह कर वह फिर जोर-जोर से रोने लगे |

पास खड़े व्यक्ति ने हिम्मत कर प्रवेश से पूछ ही लिया ‘यह सब कैसे हुआ | प्रवेश भर्राई आवाज में बोला ‘रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई थी | उसे ठीक कराते हुए कब मेरा मोबाइल गिर गया मुझे पता ही नहीं चला | मुझे तो रोहतक से निकलने के बाद पता लगा कि मेरा मोबाइल कहीं गिर गया है’ |

वह व्यक्ति बोला ‘अच्छा ! हो सकता है जिसे भी वह मोबाइल मिला होगा उसकी ही एक्सीडेंट में मौत हो गई होगी और यह बेचारी आपकी समझ यह गलती कर बैठी’ |  यह सुन कमरे और कमरे से बाहर खड़े सब लोग एक दूसरे के बात करने लगे | प्रवेश धीरे-धीरे पीछे हटते हुए कमरे से बाहर निकल अधमरा-सा अपनी गाड़ी में आ बैठता है |

उनकी बातें सुन मैं भी सकते में आ गया | विधि का विधान देखो | कई बार हम बिना कुछ जाने वह कर जाते हैं जो फिर कभी वापिस नहीं आ सकता | इसे हम परिवार की हठधर्मी का नतीज़ा कहें या फिर किस्मत ?

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