दोस्तों, आइये ज्योतिष के कुछ सामान्य नियम सीखें |
ज्योतिष में मूलतः दो भाग है : 1. गणित ज्योतिष जोकि एस्ट्रोनॉमी पर आधारित है और जिसका प्रयोग कुंडली बनाने के लिए किया जाता है | इसके इलावा गणित ज्योतिष में कुछ नियम ज्योतिष के अपने हैं जैसे की ग्रह का वक्री होना इत्यादि | इन नियमों के सहारे गणित ज्योतिष द्वारा हम कुंडली और विमशोत्तरी या अन्य दशा का टेबल बनाते है | 2. फलित ज्योतिष है | इसमें बहुत नियम हैं जिनके आधार पर भविष्य बताते हैं |
आइये गणित ज्योतिष के कुछ आधारभूत नियम समझते हैं :
खगोल विज्ञान के अनुसार निम्नलिखित ग्रह सूर्य का एक चक्कर लगाते हैं :
- बुध (Mercury) : 87.97 days or 0.2 year
- शुक्र (Venus) : 224.70 days or 0.6 year
- मंगल (Mars) : 686.98 days or 1.9 year
- बृहस्पति (Jupiter):4332.82 days or 11.9 year
- शनि (Saturn) : 10755.70 days or 29.5 years
- चन्द्र (Moon) पृथ्वी का एक चक्कर 27.32 दिन में पूरा करता है |
- पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर 365.25636 दिन में पूरा करती है जिसे हम ज्योतिष में सूर्य का चक्कर मान कर चलते हैं | यानि कुंडली के बारह घर एक साल में पूरे होते हैं | सूर्य एक महिना एक घर में बिताता है | और यह 14/15 अप्रैल से शुरू होता है | कुंडली में दर्शाए 12 घर को ज्योतिष में House या भाव भी कहते हैं |
- राहू (छाया ग्रह)
- केतू (छाया ग्रह)
यह दोनों छाया ग्रह एक दूसरे के सामने ही रहते हैं | जैसे कि यदि राहू 1 में होगा तो केतू 7 में हमेशा होगा | ऐसे ही राहू यदि 4 में होगा तो केतू 10 में होगा | अर्थात 180 डिग्री के फासले पर ही होंगे |
Table -1 : बारह राशि व उसके मालिक या स्वामी इस प्रकार हैं :
क्रम | राशि | English | स्वामी |
1 | मेष | Aries | मंगल |
2 | वृषभ | Taurus | शुक्र |
3 | मिथुन | Gemini | बुध |
4 | कर्क | Cancer | चन्द्र |
5 | सिंह | Leo | सूर्य |
6 | कन्या | Virgo | बुध |
7 | तुला | Libra | शुक्र |
8 | वृश्चिक | Scorpio | मंगल |
9 | धनु | Sagittarius | बृहस्पति |
10 | मकर | Capricorn | शनि |
11 | कुम्भ | Aquarius | शनि |
12 | मीन | Pisces | बृहस्पति |
कुल 27 नक्षत्र हैं और हर नक्षत्र के चार भाग होते हैं | अर्थात 27 नक्षत्र x 4 भाग = कुल 108 भाग यानि हर राशी में नक्षत्र के 9 भाग होते हैं | 12 राशि x 9 भाग = 108 नक्षत्र के भाग | जैसे कि मेष राशि में अश्वनी नक्षत्र के चार भाग, भरनी नक्षत्र के चार भाग और कृत्तिका का एक भाग होता है | ऐसे ही वृषभ राशि में कृत्तिका के तीन भाग, रोहिणी के चार भाग और मृगसिरा के दो भाग होते हैं | ज्योतिष में इनका एक अलग महत्व है | यह आप आगे जानेगें |
ऊपर दी गई तालिका या Table -1 के अनुसार सूर्य और चन्द्र एक-एक राशि के स्वामी हैं और बाकि सब ग्रह दो-दो राशि के स्वामी हैं जबकि राहू और केतू किसी भी राशि के स्वामी नहीं हैं |
भाव या घर
ऊपर दी पत्री या टेवे या कुंडली में घर या भाव दिखाए गये हैं | इसे 1, 2, 3…12 नंबर के हिसाब से लिखा जाता है | ज्योतिष में जब कुंडली को पढ़ा जाता है तब हम कहते हैं कि पहले या दूसरे या तीसरे ….. घर में यह ग्रह इस राशि में बैठा है | यह याद रखिये कि जहाँ 1 नंबर दिया गया है वहाँ कोई भी नंबर हो सकता है | वह नंबर उस राशि का होता है जो राशि के टेबल में पहले बताया गया है | वह राशि का नंबर जन्म के दिन पैदा होने के समय में क्या था उस हिसाब से होता है | इसे ज्योतिष में लग्न कहा जाता है | एक दिन में 12 राशि के हिसाब से 12 लग्न होते हैं |
आइए, अब लग्न क्या होता है और इसका क्या महत्व है इसे समझते हैं :
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि सूर्य एक महिना एक राशि में रहता है और वह 14/15 अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करता है तो इसका मतलब है कि वह 14/15 मई को राशि बदल कर वृषभ में आ जाएगा |
- सूर्य – 14/15 अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 मई को वृषभ राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 जून को मिथुन राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 जुलाई को कर्क राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 अगस्त को सिंह राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 सितम्बर को कन्या राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 अक्टूबर को तुला राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 नवम्बर को विश्चिक राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 दिसम्बर को धनु राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 फरवरी को कुम्भ राशि में प्रवेश करता है |
- सूर्य – 14/15 मार्च को मीन राशि में प्रवेश करता है |
उपरोक्त महिना हमें लग्न समझने में सहायता करता है तथा आपकी कुंडली में सूर्य किस राशि नंबर के साथ लिखा हुआ है उससे आपको अपने जन्म महीने का भी पता लगता है | जैसे किसी की कुंडली में सूर्य 5 नंबर के साथ लिखा है तो उपरोक्त तालिका या टेबल के अनुसार जन्म 15 अगस्त से 15 सितम्बर के बीच हुआ है पता लगता है |
उपरोक्त तालिका के अनुसार सूर्य 14/15 अप्रैल को मेष में प्रवेश करता है तो उस पूरे महीने सूर्य उदय के समय सूर्य मेष राशि में ही रहेगा | क्योंकि पृथ्वी 360 डिग्री पर एक चक्कर पूरा करती है तो इसका मतलब है कि कुंडली के 12 खानों के अनुसार एक खाना 30 डिग्री का हुआ यानि सूर्य 30 डिग्री से आगे बढ़ते ही राशि बदल लेगा |
इसी प्रकार 14/15 अप्रैल को सूर्य उदय के समय मेष लग्न होगा | इसी हिसाब से 24 घंटे में 12 लग्न/राशि बदलते हैं | आप इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं : लगभग हर दो घंटे (हम यहाँ लगभग इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि लग्न के समय के लिए सूर्य उदय के साथ-साथ जन्म स्थान को भी लिया जाता है अर्थात longitude and latitude) में एक लग्न अर्थात राशि बदलती है और 24 घंटे में 12 राशि बदलती हैं | यह सूर्य उदय से शुरू होता है | जैसे किसी का जन्म 20 अगस्त को सुबह 10 हुआ तो हम उपरोक्त तालिका के अनुसार सूर्य उदय से सिंह लग्न शुरू करेंगे | हम मान कर चलते हैं कि उस दिन सूर्य 6.20 मिन्ट पर हुआ तो इससे आगे बढ़ते हुए हम हिसाब लगा सकते हैं कि 6.20 से 8.20 तक सिंह लग्न रहेगा और 8.21 से 10.20 तक कन्या लग्न रहेगा | अतः हम कह सकते हैं कि जातक का जन्म 20 अगस्त को कन्या लग्न में हुआ होगा क्योंकि उसका जन्म सुबह 10 बजे हुआ है और कन्या लग्न 10.20 तक चलना था | अब आप समझ गये होंगे कि लग्न कैसे लिया जाता है |
इसी लग्न की राशि या उसके नंबर को कुंडली के पहले घर में लिख कर आगे नंबर दिए जाते हैं | हमें उम्मीद है कि आप समझ गये होंगे कि कुंडली में क्यों कभी 2 तो कभी 4 यानि पहले घर में 1 से 12 तक लिखा होता है |
अब आप किसी की कुंडली देख कर जन्म का महिना और समय बता सकते हैं | और आप ये भी बता सकते हैं कि जन्म शुक्ल पक्ष में हुआ था कि कृष्ण पक्ष में | जैसे सूर्य के साथ यदि चन्द्र हो तो जन्म के दिन अमावस्या होगी | चन्द्र अगले घर में हो तो शुक्ल पक्ष में हुआ है क्योंकि चन्द्र लगभग 2.5 दिन में एक राशि बदलता है | इस हिसाब से वह यदि सूर्य से विपरीत यानि सातवें घर में होगा तो पूर्णिमा होगी और उससे अगले घरों में वह कृष्ण पक्ष में होगा |
अगले भाग में हम एक कुंडली को लेकर यह सब नियम समझाएंगे |